आयुष मंत्रालय के सचिव और डीबीटी के सचिव द्वारा आयुष मंत्रालय और जैव प्रौद्योगिकी विभाग के बीच आज एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए। इसके तहत पारंपरिक स्वास्थ्य देखभाल और जैव प्रौद्योगिकी के संयोजन से नवीन और पथ-प्रदर्शक अनुसंधान करने की अपार संभावनाएं पैदा होंगी जिनका उपयोग आयुष प्रणालियों के विभिन्न मौलिक सिद्धांतों की खोज के लिए किया जा सकता है। सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र में स्वास्थ्य देखभाल की इस प्राचीन वैज्ञानिक प्रणाली की खोज और अनुप्रयोग के लिए बहु-आयामी और तकनीकी तरीकों की आवश्यकता है।

समझौता ज्ञापन के बारे में

आयुष मंत्रालय और जैव प्रौद्योगिकी विभाग के बीच समझौता ज्ञापन आयुष क्षेत्र में प्रमाण आधारित जैव प्रौद्योगिकी सहयोग की दिशा में विशेषज्ञता को एक मंच के तहत लाने के लिए मिलाना और तालमेल की संभावना का पता लगाने के लिए किया गया है। जीवन की गुणवत्ता के साथ-साथ जीवन काल में सुधार के लिए जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान एवं विकास और आयुष हस्तक्षेप (व्याहस्थापन रसायन) और मधुमेह, मोटापा, हृदय रोग, पुराने ऑस्टियोआर्थराइटिस, कैशेक्सिया, दर्द प्रबंधन और पुराने रोगों से संबंधित असर को कम करना जैसे की संक्रामक रोग तपेदिक।

मौलिक विज्ञान से लेकर सत्यापन और उसके बाद उत्पाद विकास तक के संयुक्त अनुसंधान एवं विकास प्रयासों से न केवल राष्ट्रीय स्तर पर बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में भारतीय योगदान के विकास में काफी मदद मिलेगी। डेटा विश्लेषणात्मक उपकरणों के साथ एनिमल मॉडल और अन्य उन्नत विश्लेषणात्मक तरीकों का उपयोग करके आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान के यंत्रवत अध्ययन पर जोर दिया जाएगा।

आयुष मंत्रालय के सचिव वैद्य राजेश कोटेचा ने कहा कि आयुष मंत्रालय और डीबीटी के बीच समझौता ज्ञापन से आयुष क्षेत्र में समन्वित अनुसंधान का मार्ग प्रशस्त होने की उम्मीद है। इससे आयुष स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली की विशाल अप्रयुक्त क्षमता का उपयोग सामुदायिक लाभ के लिए किया जा सकता है।

डॉ. राजेश एस गोखले ने कहा कि आयुष मंत्रालय और डीबीटी के बीच इस अंतर-मंत्रालयी सहयोग से बीमारियों के इलाज के लिए नई विधि और सहयोग मिलने की उम्मीद है।

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