जीएसटी परिषद की सिफारिशें केंद्र और राज्यों के लिए बाध्यकारी नहीं’

जीएसटी परिषद और केंद्र-राज्य संबंध के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला दिया है। शीर्ष अदालत ने साफ कहा कि माल एवं सेवा कर (GST) परिषद की सिफारिशें केंद्र और राज्यों के लिए बाध्यकारी नहीं हैं। हालांकि इनपर विचार करना महत्वपूर्ण है। इस फैसले का GST फ्रेमवर्क और केंद्र-राज्य वित्तीय संबंधों पर असर होगा। शीर्ष अदालत ने गुजरात हाई कोर्ट के पहले के फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार की याचिका भी खारिज कर दी। दरअसल, हाई कोर्ट ने फैसला दिया था कि समुद्री माल ढुलाई पर एकीकृत जीएसटी असंवैधानिक है। SC ने साफ कहा कि संसद और राज्य विधानसभा दोनों के पास जीएसटी पर कानून बनाने की शक्ति है और परिषद की सिफारिशें केंद्र और राज्यों के बीच एक सहयोगी संवाद का परिणाम हैं।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला समझिए

कोर्ट ने कहा कि जीएसटी परिषद सिर्फ अप्रत्यक्ष कर प्रणाली तक सीमित एक संवैधानिक निकाय नहीं है, बल्कि संघवाद और लोकतंत्र को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र बिंदु भी है। जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने केंद्र सरकार की इस दलील को खारिज कर दिया कि जीएसटी परिषद की सिफारिशें विधायिका और कार्यपालिका के लिए बाध्यकारी हैं।पीठ ने यह भी कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों के पास जीएसटी पर कानून बनाने की शक्तियां हैं लेकिन परिषद को एक व्यावहारिक समाधान प्राप्त करने के लिए सामंजस्यपूर्ण तरीके से काम करना चाहिए। न्यायालय कहा कि अनुच्छेद 246ए के मुताबिक संसद और राज्य विधायिका के पास कराधान के मामलों पर कानून बनाने की एक समान शक्तियां हैं। अनुच्छेद 246ए के तहत केंद्र और राज्य के साथ एक समान व्यवहार किया गया है, वहीं अनुच्छेद 279 कहता है कि केंद्र और राज्य एक-दूसरे से स्वतंत्र रहते हुए काम नहीं कर सकते।

गुजरात हाई कोर्ट का फैसला बरकरार

पीठ ने कहा कि 2017 के जीएसटी अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो केंद्र और राज्य के कानूनों के बीच विरोधाभास से निपटता हो और जब भी ऐसी परिस्थितियां बनती हैं तो परिषद उन्हें उचित सलाह देती है। न्यायालय ने गुजरात हाई कोर्ट के एक फैसले को बरकरार रखते हुए यह निर्णय दिया।गुजरात की अदालत ने कहा था कि ‘रिवर्स चार्ज’ के तहत समुद्री माल के लिए आयातकों पर एकीकृत जीएसटी (आईजीएसटी) नहीं लगाया जा सकता है। पीठ ने कहा कि जीएसटी परिषद की सिफारिशें केंद्र और राज्यों पर इस कारण से बाध्यकारी नहीं हैं, क्योंकि अनुच्छेद 279बी को हटाना और संविधान संशोधन अधिनियम 2016 द्वारा अनुच्छेद 279 (1) को शामिल करना यह इंगित करता है कि संसद का इरादा सिफारिशों के लिए था। जीएसटी परिषद सिर्फ एक प्रेरक की तरह है, क्योंकि जीएसटी व्यवस्था का उद्देश्य सहकारी संघवाद को बढ़ावा देना था।

पीठ ने कहा कि भारतीय संघवाद की महत्वपूर्ण विशेषताओं में से राजकोषीय संघवाद शामिल है और 2014 के संशोधन विधेयक के उद्देश्यों और कारणों के विवरण, संसदीय रिपोर्टों और भाषणों से संकेत मिलता है कि संविधान के अनुच्छेद 246ए और 279ए राज्यों और केंद्र के बीच सहकारी संघवाद और सद्भाव को बढ़ाने के मकसद से पेश किए गए थे।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ द्वारा लिखे गए 153 पन्नों के फैसले में पीठ ने कहा कि जीएसटी परिषद में केंद्र की एक-तिहाई वोट की हिस्सेदारी है और इसके साथ ही अनुच्छेद 246ए में प्रतिकूल प्रावधान की अनुपस्थिति से यह पता चलता है कि जीएसटी परिषद की सिफारिशें बाध्यकारी नहीं हो सकती हैं। फैसले में आगे कहा गया, ‘इसलिए यह तर्क कि यदि जीएसटी परिषद की सिफारिशें बाध्यकारी नहीं होंगी, तो जीएसटी का पूरा ढांचा चरमरा जाएगा, यह टिकने वाला नहीं है।’

क्या बदलेगी ‘एक राष्ट्र एक कर’ व्यवस्था

राजस्व सचिव तरुण बजाज ने न्यायालय के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि इससे ‘एक राष्ट्र-एक कर’ व्यवस्था में बदलाव की संभावना नहीं है। उन्होंने कहा कि यह फैसला केवल मौजूदा कानून का दोहराव है, जो राज्यों को कराधान पर परिषद की सिफारिश को स्वीकार करने या खारिज करने का अधिकार देता है। बजाज ने साथ ही कहा कि इस शक्ति का इस्तेमाल पिछले पांच साल में किसी ने भी नहीं किया।

उन्होंने कहा कि संवैधानिक संशोधन के अनुसार जीएसटी परिषद की सिफारिशें हमेशा एक मार्गदर्शन थीं और इनका पालन अनिवार्य नहीं था। यह पूछे जाने पर कि क्या सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मद्देनजर जीएसटी कानून में बदलाव की जरूरत है, राजस्व सचिव ने कहा, ‘मुझे इस समय कोई जरूरत नहीं दिख रही है।’ उन्होंने कहा कि जीएसटी अधिनियम की धारा 9 स्पष्ट रूप से कहती है कि कर की दर का फैसला परिषद की सिफारिशों पर आधारित होना चाहिए।

कोर्ट के फैसले से पक्की हो गई बात

फैसले पर तमिलनाडु के वित्त मंत्री पलानीवेल त्यागराजन ने ट्वीट किया कि जीएसटी व्यवस्था को पूरी तरह दुरुस्त करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि हालांकि इस पहलू (जीएसटी परिषद की शक्तियां और सरकारों के कराधान अधिकार) के बारे में पहले से पता था, लेकिन न्यायालय के फैसले से यह बात पक्की हो गई। केरल के वित्त मंत्री के एन बालगोपाल ने कहा कि न्यायालय ने अपने फैसले से राज्यों और लोगों के संघीय अधिकारों को बरकरार रखा है। उन्होंने इसे एक ऐतिहासिक फैसला करार दिया।

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